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साहित्य और चापलूसी

आचार्य शीलक राम
आचार्य शीलक राम
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साहित्य अकादमी चापलूसों के अड्डे
करो चापलूसी खूब पाओ ईनाम !
योग्यता की वहां कोई नहीं कीमत
होते पुरस्कृत जो सरेआम बदनाम !!

इन हेतु योग्यता बस एक ही है
दिन- रात दबाओ पैर अधिकारी !
रुपये दो या करो उनकी चापलूसी
फिरती यहां प्रतिभा मारी – मारी !!

ऊपर जाने का बस पथ एक ही
गला काटो या खूब करो घोटाले!
सत्य पथ पर चलना मूढता यहां
सफलता; भ्रष्टता गलबहियां डाले!!

साहित्य- सृजन का क ख न जानें
बने हुए हैं प्रतिष्ठित साहित्यकार!
वैभव भोग रहे ये साहित्य नाम पर
सृजनात्मक लेखक भूखे हर प्रकार!!

नेताओं तक पहुंच मेरे भाई यहां
साहित्य में झंडे गाडने का साधन!
पुरस्कार चाहिए या चाहिए प्रसिद्धि
करो गूंडे- बदमाश नेता आराधन !!

वास्तविक लेखक या कवि कोई भी
अवश्य यहां पर भूखों नित मरना !
हल चलाओ या करो कोई मजदूरी
कोई यहां पर नहीं चाहता सुधरना!!

नेता; शिक्षक; धर्मगुरु या व्यापारी
सभी लगे हैं यहां देश को लूटने !
अव्यवस्था का लहरा रहा परचम
देख – देखकर दिल लगा है टूटने!!

भ्रष्टाचार का सर्वत्र है बोलबाला
योग्यता व प्रतिभा गई भाड में!
कोई भी दल यहां सत्ता में आए
रखो विश्वास बस तुम जुगाड में!!

पूजा हो रही है बछिया के ताऊ
राजनीति हो या साहित्य सृजन!
करना पड जाए कुछ भी जीवन
मूढ कभी भी चरित्रवान मत बन!!

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